Wednesday, 18 January 2017

"हम" और "मैं"

हम और मैं
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जब दुनिया रची जा रही थी
सब कुछ पूर्व से ही सुनिश्चित था शायद

नाली के कीड़े से लेकर
बड़े-बड़े जंगली हांथियों तक
ज़हरीले साँप बिच्छुओं से लेकर
प्रकृति के दोस्त केंचुए तक
सारे पशु-पक्षी और हम...

हम मतलब दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति
हम मतलब ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना
हम मतलब सद्गुणों से भरे-पूरे जीव
हम जो,
पूरी दुनिया के जीवों की अच्छाई सीख गये
हम जो,
देवताओं को भी सम्मोहित कर लेते थे

हम जो,
न्यूटन के क्रिया-प्रतिक्रिया नियम की तरह
प्रकृति को प्यार देते थे
प्रकृति हमारी जरूरते पूरी किया करती थी
जैसे अब भी करती है...

हम कुछ इस तरह विकासशील होने लगे
हमने सीखीं
अच्छाइयों के साथ मतलबी बुराइयों की हर चाल
जिसने उखाड़ कर फेंक दी
हमारी बरसों से संजोयी हुई प्यार की पौध
हमने खेला वो खेल,
जहाँ "हम" नहीं "मैं" विजयी होता है

हम सब "हम" के दौर से भागते-दौड़ते
आकर खड़े हो गए अकेले "मैं" पर

                            #सुशान्त_मिश्र

Tuesday, 10 January 2017

अपमान-राजनीति की एक अजब चाल

आंदोलन जारी था।पूरे शहर में जाम का माहौल..चिलचिलाती धूप में कुछ लोग चिल्लाये जा रहे थे..,"उसकी जुबान काट दो...उसे जेल में डाल दो..उसने अपमान किया है..हाँ...हाँ..उसे सजा मिलनी चाहिये।"
एक महान नेता की मूर्ति के आगे ये सब हो रहा था।मुझे लगा  मूर्ति अभी रो देगी।वो मूर्ति ..और उसकी रूह...तड़प रही होगी शायद...।धूप बढ़ती जा रही थी।लोग बेहाल थे।गाड़ियों की सीटियां और लोगों की बेचैनी उन आंदोलनकारियों को न सुनाई दे रही थी न दिखायी दे रही थी।
मैं भी ऑटो में बैठा ये सारा तमाशा देखे जा रहा था।रिक्शा चालक से मैंने यू ही पूछ दिया,"ये सब क्या है भैया?और कितनी देर हमे इंतज़ार करना पड़ेगा?ये जाम तो कम होने का नाम ही नहीं ले रही।"
"अमा! क्या टेंशन ले रहे हो यार?..तुम्हे घर जाने की पड़ी है...ज़रा उन लोगों को भी देखो जो अपने घरों को छोड़कर यहाँ कब्बड्डी खेल रहे हैं।इनका खुद का घर कैसा भी हो?लेकिन बड़े भक्त हैं ये सब..किसी का अपमान नहीं सह सकते।किसी ने इनके पार्टी मुखिया को थोक के भाव गालियां भांज डाली...अब ये लोग उसका बदला ले रहे हैं।"
  "अच्छा!फिर तो सही कर रहे हैं ये लोग...कोई हमारे मुखिया को गाली देगा तो हम भला कैसे बर्दाश्त करेंगे?लेकिन इन लोगों को उसके लिये व्यक्तिगत कार्यवाही करनी चाहिए न...भोली-भाली जनता..."
मेरी बात पूरी भी न हुई की वो बोल उठे,"अमा फिर वही बात!..कौन भोली-भाली जनता?ये जो लोग सड़कों पर है न वो भी जनता है और ये जो हम जैसे कुछ लोग जूझे जा रहे हैं ये भी जनता है।देखो भाई!..कुछ लोगों को अपने मतलब के अलावा कुछ नज़र नही आता।अभी ये लोग ग़दर काटेंगे..कुछ दिन बाद चुनाव है..जनता इन पर दया दिखायेगी..और ये फिर आ जाएंगे सत्ता में..जनता को फिर मिलेगा घण्टा..."
 
बड़े भैया बहुत गुस्सा हो गए थे।वो गरियाते रहे हम सुनते रहे।कुछ गाड़ियां आगे बढ़ी और हमारा ऑटो अब ठीक मंच के सामने था।दो नौजवान लड़के,जोकि अपने पुराने कपड़ों के ऊपर अपनी पार्टी का चुनाव निशान चस्पा कर,मंच पर दायीं और बायीं ओर खड़े थे।नारों का दौर जारी था।भाषण शुरू हुआ।बीच-बीच में बहुत जोरों से तालियां बजती थी।मामला नारी अपमान का था।मुद्दा बड़ा था।आंदोलन भी अच्छा था।                   भाषण के बीच वक्ता ने अपील की,"वो हमारे लिये देवी हैं।हम उनका बहुत सम्मान करते हैं।उनके लिए कोई अभद्र भाषा का          प्रयोग करे हम हरगिज़ बर्दाश्त नही करेंगे।उसने हमारी बहन का अपमान किया है।हम बदला लेकर रहेंगे।"
   अब मैं समझ पाया की माजरा क्या है?सही भी है हम जिसे भगवान मानते हैं और कोई हमारे भगवान का अपमान कर दे तो गुस्सा तो ज़ायज़ है।
   भीड़ में से एक आंदोलनकारी हमारे ऑटो की तरफ निकलकर आया।मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी।फ़ोन उठाते ही बोला,"का है री!अब बेर बेर काहे फून करती हइ आंय! भोरे बोल के आये रहा की बिल्ल्वइहे न!लेकिन ई ससुरी! मेहरुआ के जातअइसेन होति हइ|"
शायद फ़ोन उन साहब के घर से था।उधर से कोई महिला की आवाज आ रही थी।आवाज़ सुनाई न पड़ी तो उन्होंने उसका स्पीकर ऑन किया।
वो बोले,"अब का है कुछ बतइहौ!की ख़ाली मौज़ियाय बदइ फ़ून किहे हउ??"
  "मौज़ियाय बदे न किहेन!गोरून बदे चारा न आवा...तुमहू गएउ...बड़कन्नेउ गये...अब चारा फटता को करइ?? हमार बस का जो रहइ कइ डारेन..."उधर से जवाब आया।
   "अरी! गौरिया कहाँ है? हम उ से चारा काटै कहे रहन...कहाँ मरि गइ??"
  "गौरिया कहति हइ की न जाइब...हमारि बेइज़्ज़ती होत हइ...गाँव म बियाह तै कई दिहे हउ..अब उहे से चारा कटवाई त लोग का कहिहे...अउ उ मनोजवा! उ तो वइसे भी बड़ा दिक्कात रहा..और फिर धमकियो तक दिहिस रहा कि हार-पात के काम करइहउ त हम गौरी से बियाह न करिबि...तुमका तउ इज़्ज़त मान के होश कहाँ हइ?"
   "चुप ससुरी!बड़ा इज़्ज़त मान के पाठ पढ़ावै चली हइ...हमारे नेता को कोई गरिया दिहिस त हम सब छोड़-छाड़ के आ गएन! उनकी इज़्ज़त,हमार इज़्ज़त। लोग गाँव म वैसेउ कहाँ जिए देहे..हमार देवी जैसेन नेता का कोई गरिया दिहिस औ हम घर घुसे रही...कुछो कर..गौरिया न जात त खुद जा...हम जब तक इन्साफ न मिल जाई आइब न!! और हाँ बड़कन्ने की मेहरुआ से बता दिहेउ वहउ हमरे संघे हइ...."
       फोन जेब में रखा।आगे की ओर चिल्लाते हुये बढ़े...
अब नेता जी पूरे जोश में थे,"जो हमारे नेता की तरफ आँख उठाएगा हम बर्दाश्त नहीं करेंगे...अब फैसला जनता करेगी..आने वाले चुनाव में हम सब इसका बदला लेकर रहेंगे.. क्यों भाइयों!!!!!!"उसने कहते हुए जनता की तरफ़ हाँथ फैलाए।सब एक स्वर में "ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद"के नारे लगाने लगे।अब ऑटो थोड़ा सा और बढ़ा ही था कि एक ज़ोरदार अपील सुनाई दी,...,"जो हमारी बहू बेटियों बहनों का अपमान करेगा क्या हम उसकी बहू बेटियों बहनों का सम्मान करेंगे??"
सारे माहौल में "नहीं....."एक साथ गूंज उठा।फैसला हो गया था।ऑटो वाले भैया भी खीजे एक्सीलेटर खींचे जा रहे थे और बोले,"वाह री राजनीति के ठेकेदार"...
  

अपवादित इंसान

उसका इंसान होना अपवाद सिद्ध होता है
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जब उसके सूनेपन को
कोई समझ बैठता है उसका सर्वश्रेष्ठ गुण
जब उसका मौन
कोई समझ बैठता है सर्वश्रेष्ठ संगीत
जब उसका मुस्कुराना
कोई समझ बैठता है सर्वश्रेष्ठ कोमल अभिव्यक्ति
तब शुरुआत होती है एक युद्ध की
युद्ध का उद्देश्य होता है उसे मोह से हरा देना

जब वह जा रहा था अपनी अबूझी मंज़िल की ओर
उसे लग गई अचानक एक ठेस
जिसने घायल कर दिया उसका पूरा वर्तमान
वो रोड़ा,
जो बन सकता था उसकी हार का कारण
वह उसे ठेस देने के तुरंत बाद बढ़ चला
अपनी नयी राह पर एक नयी मंज़िल की ओर
उसने रोड़े को दिखा दिया उसका भविष्य
अब,
दोनों बढ़ चले थे अलग-अलग रास्तों पर
अपने भविष्य की ओर

वह तब भी खुश था
जब अनंतकाल से संजोयी हुई उसकी खुशियां
कोई लूट ले गया था
वह तब भी खुश था
जब उसके स्वयं के बनाये हुये रिश्ते उसे धकेल रहे थे
संघर्ष की आग में

न ही वह मनाता है विजय का उत्सव
न ही किसी पराजय का शोक
उसे काल की गति से नहीं है भय
भय नहीं क्योंकि मोह नहीं
मोह नहीं तो इंसान कैसे?

मोह हार चुका था
अब वह अपनी पराजय का शोक नहीं
शत्रु की विजय का उत्सव मना रहा था

सच,
उसका इंसान होना अपवाद सिद्ध होता है
उसके स्वभाव से
                                    #सुशान्त_मिश्र