Sunday, 11 October 2015

तुम्हारे बग़ैर.........

सुनो ज़रा,,,,
एक छोटी सी दास्ताँ
अधूरी है
ठहरो तो
सुन भी लो
न जाने क्या क्या
अधूरा है
तुम्हारे बग़ैर....
सचमुच
मैं
मेरा मन
मेरी तन्हाई
बस इतना सा ही
रह गया सिमट कर
मेरा जहाँ
तुम्हारे बगैर....
सुनो तो
और भी बहुत कुछ
टूटे पत्तों की तरह रह गया सूखकर
बिखरकर
तुम्हारे बगैर....
सुन भी लो
अधजगी रात
अज़नबी दिन
अधखुली आँखें
अधूरे ख़्वाब
और न ज़ाने क्या क्या
अधूरा है
तुम्हारे बगैर....
सुनो
खुली आँखों में
हिम्मत नहीं शायद
बन्द आँखों से भी
अश्क नहीं रुकते
ये कुछ कह रहें
शायद ये कि
आओ
लौट आओ
फिर से मेरी ज़िन्दगी में
सचमुच
बहुत कुछ अधूरा है
तुम्हारे बगैर.....
-सुशान्त मिश्र

तारे और सितारे.....


मेरे बचपन में,
सम्पूर्ण गगन में 
छाये रहते थे तारे
जिन्हें 
देखते 
ताकते 
गिनते रहते थे हम 
कभी किसान के हल जैसे 
कभी कवि की कलम जैसे 
तो कभी प्रश्नचिह्न बनकर 
असलियत बताते जिन्दगी की
और न जाने कितने चित्र 
दिखाते थे तारे
फिर अकिंचन 
मुझे आराम देने के लिए 
भेज देते थे
प्यारी सी निंदिया रानी को
हम सो जाते
अनेकों प्यारी सी कहानी देखकर 
चाँद खिलखिलाकर हँसता था जैसे 
तारों के साथ रहकर महफिल में;,,,,,
समय व्यतीत होता गया,,
कम होते गये तारे
आसमान में 
हर टूटा तारा
विरह की नयी गाथा 
सुनाता 
चला जाता है
सूना-सूना सा लगता है अब
वो आसमान 
जो सम्पूर्ण रहता था तारों से
खाली-खाली है वो
अनगिनत तारे होते हुये भी
चाँद भी उदास हैं
उन तारों के बीच 
शायद 
कोई हमदर्द नहीं है चाँद का
क्योंकि तारे सितारे हो गये हैं अब
-:सुशान्त मिश्र