मेरे बचपन में,
सम्पूर्ण गगन में
छाये रहते थे तारे
जिन्हें
देखते
ताकते
गिनते रहते थे हम
कभी किसान के हल जैसे
कभी कवि की कलम जैसे
तो कभी प्रश्नचिह्न बनकर
असलियत बताते जिन्दगी की
और न जाने कितने चित्र
दिखाते थे तारे
फिर अकिंचन
मुझे आराम देने के लिए
भेज देते थे
प्यारी सी निंदिया रानी को
हम सो जाते
अनेकों प्यारी सी कहानी देखकर
चाँद खिलखिलाकर हँसता था जैसे
तारों के साथ रहकर महफिल में;,,,,,
समय व्यतीत होता गया,,
कम होते गये तारे
आसमान में
हर टूटा तारा
विरह की नयी गाथा
सुनाता
चला जाता है
सूना-सूना सा लगता है अब
वो आसमान
जो सम्पूर्ण रहता था तारों से
खाली-खाली है वो
अनगिनत तारे होते हुये भी
चाँद भी उदास हैं
उन तारों के बीच
शायद
कोई हमदर्द नहीं है चाँद का
क्योंकि तारे सितारे हो गये हैं अब
सम्पूर्ण गगन में
छाये रहते थे तारे
जिन्हें
देखते
ताकते
गिनते रहते थे हम
कभी किसान के हल जैसे
कभी कवि की कलम जैसे
तो कभी प्रश्नचिह्न बनकर
असलियत बताते जिन्दगी की
और न जाने कितने चित्र
दिखाते थे तारे
फिर अकिंचन
मुझे आराम देने के लिए
भेज देते थे
प्यारी सी निंदिया रानी को
हम सो जाते
अनेकों प्यारी सी कहानी देखकर
चाँद खिलखिलाकर हँसता था जैसे
तारों के साथ रहकर महफिल में;,,,,,
समय व्यतीत होता गया,,
कम होते गये तारे
आसमान में
हर टूटा तारा
विरह की नयी गाथा
सुनाता
चला जाता है
सूना-सूना सा लगता है अब
वो आसमान
जो सम्पूर्ण रहता था तारों से
खाली-खाली है वो
अनगिनत तारे होते हुये भी
चाँद भी उदास हैं
उन तारों के बीच
शायद
कोई हमदर्द नहीं है चाँद का
क्योंकि तारे सितारे हो गये हैं अब
-:सुशान्त मिश्र
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