बीसवें जन्मदिन पर....
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एक उपहार के तौर पर
मेरे दसवें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में
मेरी माँ ने मुझे दी थी एक पैंट और टी शर्ट
टीशर्ट कि जिसमें नहीं थी आस्तीनें
जिसका गला मेरे गले के साइज से थोड़ा बड़ा था
मैनें कहा भी था माँ से,
यह मुझे फिट नहीं बैठती,
वो मुस्करा उठी थी उस वक़्त एक सवाल खींचकर
अपनी मुस्कान के साथ
पैंट कि जिसमें लगी हुई थी चार जेबें
हर जेब में टांके हुये थे दो बटन
जिससे अंदर रखी कोई चीज़,न निकल सके बाहर
बिना बटन खोले,
जिन्हें खोलने का अधिकार सिर्फ मुझे था
इस बार
अपने बीसवें जन्मदिन के उपलक्ष्य पर
जब मैं पहन सकता हूँ गलाघोंटू टीशर्ट
जिसकी आस्तीनें कसती हों मेरी गठीली बाहें
पहन सकता हूँ वो पैंट,
जो इतनी फटी हो कि दिख सकूँ मैं अमीर
जिसमे जेब होना नहीं हो कोई जरूरी बात
तब,
मैनें फिरसे अपने दसवें जन्मदिन का लिबास दोहराया है अपने बीसवें जन्मदिन के उपलक्ष्य पर
माँ मुस्कराते हुये
दस बरस पहले खींचे गये सवाल को समझा रही है
अब,
जब मैं समझने लायक हूँ
"टीशर्ट में नही थीं आस्तीनें
क्योंकि, आस्तीनों में बस सकते हैं सांप
जो होते है बहुत ही मीठे ज़हर वाले
गला था तुम्हारे गले से कुछ बड़ा
ताकि कोई ले न सके तुम्हारे गले की वास्तविक माप
और तुम सुरक्षित रहो, होशियार रहो
पैंट में थी चार जेबें
जिनमें बंद किये गये है तुम्हारी ज़िन्दगी के चार पन
जिसकी एक जेब तुमने बचपन में कर दी है खाली
आज तुम्हारे बीसवें जन्मदिन पर
खुल चुकी है दूसरी जेब
जो अब तुम खर्च करोगे इसलिये
कि तुम्हारी आगे की जेबें खुलने पर
सुख और आनंद की टॉफियों से भरी हुई मिलें
बची हुई चौथी जेब में रखी हुई है समय की पुरानी तस्वीर
जिमसें मैं और तेरे बाबूजी दिखेंगे तुझे
बीते हुये कल के साथ
तेरे आज को तकते हुये,हंसते हुये,आशीर्वाद देते हुये"
#सुशान्त_मिश्र
बेहद सुंदर सृजन
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