Saturday, 6 August 2016

अपराजित प्रेम

~~~~~~~~~अपराजित प्रेम~~~~~~~~~~

सुनो;
मैं आज तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ
बुरा मत मानना,
क्योंकि मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहूँगा,
जो तुम्हारे लिये हितकर न हो
तुम और मैं
समाज के मूल से निकली दो शाखायें
जिन्होंने आपस में एक दूसरे को गूंथ दिया
बिना किसी का भय किये
तुम,मुझे सिखाती थी, मैं कुछ यूँ ही सीख लिया करता था
तुम्हारी कभी न मिटने वाली अठखेलियों की रेखाओं से,

कल भी सब अच्छा था,आज भी सब अच्छा है
लेकिन आने वाला कल...
हमारे होंठ ठहर जाते हैं
सारे ज्ञान के घरों के किवाड़ धड़ाक से बंद हो जाते हैं
मन छटपटा उठता है जब तुम पूछ बैठती हो,
"आगे का क्या सोंचा है तुमने?"
फिर मैं एक लंबी सांस खींचकर
इधर-उधर देखने के बाद,
बड़ी लापरवाही से मुसकरा पड़ता हूँ
और तुम मेरे मूक हो जाने पर
अपने सवाल का जवाब खुद बताने लगती हो,
और वो भी मेरे नहीं पूछे जाने पर भी
तुम्हारा जवाब,तुम्हारे सारे सपनों के चित्र आसमान में खींचकर
मेरे मन को झकझोरकर,फिर मुझसे सवाल करता,
"क्या तुम वैसे बन पाओगे जैसा ये चाहती है?"

आज मैं तुम्हारे सारे सवालों का जवाब देने आया हूँ
मैं निष्ठुर सही,धोकेबाज सही,
पर तुम्हे यह सुनना पड़ेगा
सिर्फ सुनना ही नहीं समझना भी जो मैं समझाना चाहता हूँ,
हमने कई बार ज़िन्दगी की उलझी हुई अनेक गुत्थियों को,
सुलझा लिया है एक दूसरे के सहयोग से,
आज फिर तुम मेरा सहयोग करोगी न

तो सुनो,
मैं आज तुम्हारे सारे अधिकार तुम्हे सौंपना चाहता हूँ
मुझे भी तुम मुक्त कर दो अपने वचनों से
मैं भी कोशिश करूँगा की तुम मुझे भूलकर,
जियो अपनी नई ज़िन्दगी अपने सपनों के साथ
बस एक सपने का गला घोंट देना
मैं नहीं बन सकता तुम्हारे सपनों का राजा
क्योंकि मैं असमर्थ हूँ समाज के उस पेड़ के आगे
जिसकी छाँव में हमारा प्रेम पला,जवान हुआ
मैं झूठ इसलिये नहीं कह सकता क्योंकि
मैं झूठ सह नहीं सकता
तुम मेरा पहला प्रेम नहीं
तुम मेरी अंतिम चाह नहीं
तुम मेरी अधूरी प्यास नहीं
तुम मेरी कोई आस नहीं
तुम तो मेरी प्रेरणा हो,
मेरे कर्त्तव्य पथ बढ़ने की प्रेरणा जिसके लिए तुम हमेशा
मुझे दिखाती रहतीं थी मेरी औक़ात
और मैंने नहीं पार की तुम्हें दूषित करने की हदें

मैं तुम्हारे दिए सपनों को पूरा करने जा रहा हूँ
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए
लेकिन सच मानों,मुझे तुम्हे छोड़कर जाना पड़ेगा
तुम्हारे सुंदर भविष्य के लिये
ताकि आने वाले सुनहरे कल में
कोई मेरा नाम लेकर घोल न सके तुम्हारी ज़िन्दगी में विष
और तुम हमेशा खुश रहो....

अरे! ये क्या?तुम दुःखी हो गयीं
निराश मत हो हम फिर मिलेंगे जरूर
ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर
तब तुम अपने पूर्ण सपने के साथ मुझे मिलना
अचानक मुझे देखकर आंसू मत बहाना
बस मेरी बातों को याद करना
फिर मुझसे अजनबी होकर कहना
"बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर"

तब मैं समूचे समाज को दिखा दूंगा
एक नये प्रेम की परिभाषा का चित्र
फिर हम हारकर भी जीत जायेंगे
तब अमर होकर आसमान में एक तारे की तरह चमक उठेगा
हमारा हारकर,जीता हुआ अपराजित प्रेम......
                                       ~:  सुशान्त मिश्र

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